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संयुक्त व्यंजन/संयुक्ताक्षर

 संयुक्त व्यंजन/संयुक्ताक्षर

//दिनेश एल० "जैहिंद"


नुस्वार और विसर्ग ये दोनों व्यंजन हैं, क्योंकि इनके उच्चारण में स्वर वर्ण मिला रहता है। जैसे- अ + ं = अं, अ + : = अ:।

ये "अयोगवाह" हैं, क्योंकि ये स्वर के बाद, किंतु स्वर से अलग (अयुक्त) लिखे या बोले जाते हैं।
हिंदी में विसर्ग का व्यवहार अधिकांश नहीं होता है, कुछ ही स्वरों और स्वर वाले व्यंजनों में विसर्ग लगाया जाता है। जैसे- अ:, अत:, पुन:, दु:ख।

नोट - ड़ और ढ़ ये हिंदी के दो अतिरिक्त
टवर्गीय वर्ण हैं। शब्द के प्रारम्भ में ये नहीं आते और इनका किसी व्यंजन से संयुक्त रूप भी नहीं होता।

हम यहाँ विसर्ग की बात न करके मात्र अनुस्वार ( ं ) की बात करेंगे।

संयुक्त व्यंजन/संयुक्ताक्षर

संयुक्ताक्षर में दो या दो से अधिक व्यंजनों का मेल होता है और उन दोनों में स्वर नहीं होता। जैसे- सच्चा, प्रसन्न, उत्पन्न, दुर्गा, ख्याल, राष्ट्र इत्यादि ।

"क्ष, त्र, श्र, और ज्ञ" हिंदी में ये संयुक्त व्यंजन हैं। ये कहीं से भी स्वतंत्र व्यंजन नहीं हैं, इसीलिए हिंदी वर्णमाला में लिखा जरूर जाता है। पर संयुक्त व्यंजन को जानने भर के लिए।
इन व्यंजनों की रचना दो व्यंजनों के मेल से हुई है। जैसे-
क्+ष् = क्ष/  उदा०-  कक्षा, शिक्षा
त्+र् = त्र/  उदा०-  छात्र, पत्रिका
श्+र् = श्र/  उदा०-  श्रीराम, श्रवण
ज्+ञ् = ज्ञ/  उदा०-  ज्ञान, आज्ञा

यहाँ मैं जो विशेष बात बताने वाला हूँ, वो है अनुस्वार ( ं )। जो संयुक्ताक्षर के ही अन्तर्गत आता है।
यदि किसी संयुक्ताक्षर वाले शब्द में वर्ण को अनुस्वार ( ं ) लगाकर लिखते हैं तब तो ठीक है। वरना वर्ण को संयुक्ताक्षर के रूप में या अर्द्ध वर्ण के रूप में लिखते हैं तो लेखक से प्रायः त्रुटियाँ सम्भव है। तो फिर एक कुशल लेखक या साहित्यकार को किन-किन सावधानियों से गुजरना पड़ सकता है? जानना बहुत जरूरी हो जाता है।

आइए,,, हम यहाँ वही जानने-समझने का
प्रयत्न करते हैं।

मैं यहाँ कुछ शब्द "कवर्गीय" के लिए लेता हूँ--
गंगा, चंगा, कंगाल, कंगन, औरंगाबाद
ये सभी शब्द संयुक्ताक्षर वाले हैं। जिन्हें मैं अनुस्वार ( ं ) लगाकर लिखा हूँ। लेकिन यही शब्द जब मैं अनुस्वार ( ं ) हटाकर लिखूँगा तो ये शब्द कैसे लिखे जाएंगे?
देखें--
गंगा = गङ्गा
चंगा = चङ्गा
कंगाल = कङ्गाल
कंगन = कङ्गन
औरंगाबाद = औरङ्गाबाद

अब मैं यहाँ कुछ अन्य शब्द "चवर्गीय" के लिए लेता हूँ--
खंजर, झंझट, कंचन, मंजन, अंजन
खंजर = खञ्जर
झंझट = झञ्झट
कंचन = कञ्चन
मंजन = मञ्जन
अंजन = अञ्जन

फिर मैं यहाँ कुछ अन्य शब्द "टवर्गीय" के लिए लेता हूँ--
ठंडक, पंडाल, घंटी, पंडित, डंठल
ठंडक = ठण्डक
पंडाल = पण्डाल
घंटी =  घण्टी
पंडित = पण्डित
डंठल = डण्ठल

पुन: मैं कुछ अन्य शब्द "तवर्गीय" के लिए लेता हूँ--
सुंदर, मंथन, समुंद्र, प्रसंन, प्रशांत
सुंदर = सुन्दर
मंथन = मन्थन
समुंद्र = समुन्द्र
प्रसंन = प्रसन्न
प्रशांत = प्रशान्त

फिर मैं कुछ अन्य शब्द "पवर्गीय" के लिए लेता हूँ--
संभव, अंबार, दिगंबर, चंपा, पंपा
संभव = सम्भव
अंबार = अम्बार
दिगंबर = दिगम्बर
चंपा = चम्पा
पंपा = पम्पा

उपर्युक्त उदाहरणार्थ लिये गये शब्दों में आप देख रहे हैं कि किसी न किसी वर्ण पर अनुस्वार ( ं ) है ही। अर्थात् शब्द के कोई एक वर्ण पर एक अनुस्वार ( ं ) है।
अनुस्वार से सामान्यत: अर्द्ध न ( न् ) का बोध होता है।
लेकिन उपर्युक्त उदाहरणों में आप देख रहे हैं कि यही अनुस्वार कहीं 'ङ्' तो कहीं 'ञ्' तो कहीं 'ण्' तो कहीं 'न्' तो कहीं 'म्' के रूप में  हिज्जे करने पर प्रयुक्त हुआ है। मगर ऐसा कैसे....? .....क्यो?
तो पाठको...! इसके भी अपनी हिंदी भाषा व व्याकरण में कुछ नियम हैं। जिन्हें मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ--

वर्णमाला में पहले पाँच वर्णों को कवर्गीय कहते हैं। जो इस प्रकार हैं-- क, ख, ग, घ, ङ।
अर्थात्‌ अंतिम वर्ण 'ङ' है। अब नियम यह है कि जिस शब्द के किसी वर्ण पर यदि अनुस्वार ( ं ) है और यदि उसके ठीक बाद का वर्ण कवर्गीय है तो 'अनुस्वार' हिज्जे करते वक़्त उस वर्ग के पाँचवे वर्ण 'ङ' हलंत यानि "अर्द्ध ङ" हो जायेगा।
( रङ्गारङ्ग/गङ्गोत्री/कङ्काल )

इसी प्रकार हरेक संयुक्ताक्षर अनुस्वार वाले शब्दों के साथ होता है।

यदि वह चवर्गीय हो तो 'ञ' यानि अर्द्ध ञ।
( खञ्जन/मञ्चन/पञ्चर )

यदि वह टवर्गीय हो तो 'ण' यानि अर्द्ध ण।
( डण्ड/खण्ड/घण्ट )

यदि वह तवर्गीय हो तो 'न' यानि अर्द्ध न।
( बन्दर/अन्दर/आसन्न )

यदि वह पवर्गीय हो तो 'म' यानि अर्द्ध म।
( सम्मान/चुम्बक/सम्पन्न )

नोट -
१) उपरोक्त नियम हिंदी भाषा में "पवर्गीय" वर्णों के बाद अन्य वर्णों के साथ लागू नहीं होता है।
२) पंचमाक्षर अर्थात् वर्णमाला में किसी वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन- 'ङ', 'ञ', 'ण', 'न', 'म' हैं। जिनका आधुनिक हिन्दी में पंचमाक्षरों का प्रयोग बहुत कम हो गया है और इसके स्थान पर अब अनुस्वार यानि बिंदी ( ं ) का प्रचलन बढ़ गया है।

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दिनेश एल० "जैहिंद"
16. 11. 2021




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