सहिष्णुता का अंत
बड़े भाई ने ज़मीन-जायदाद के बंटवारे के बाद मेथीलाल साव से उनकी बची-खुची ज़मीन भी हथिया ली।
उन्होंने सोचा- बड़े भाई ने बहुत बड़ी बेईमानी कर ली। मगर जाने दो इससे क्या होता है ..!
शायद भगवान की यही मर्ज़ी थी।
हद तो तब हो गई जब बेटी की शादी के बाद बेटा भी अपनी बहू की बातों में आ कर ससुराल जा बसा।
बेटी अपने घर की होकर रह गई और बेटा अपनी पत्नी और ससुराल का।
तब मेथीलाल बड़े दर्द सह कर भी जी रहे थे।
बीते पाँच सालों में जैसे सब कुछ बदल गया। बदला अगर कुछ नहीं तो सिर्फ मेथीलाल का स्वभाव....!
वही भोलापन, इंसानियत, ईमानदारी, सहनशीलता.....!
सब कुछ छीन गया सिर्फ एक घर को छोड़कर।
बेटी अपनी ससुराल और बेटा अपनी....
अपना अब कोई नहीं रह गया। रह गई तो सिर्फ एक मात्र उनकी पत्नी !
बेटी और बेटे की बेरूखी भी मेथीलाल सह गये उफ़्फ़ तक न की।
और अंत में सह गये अपनी पत्नी की जुदाई.....।
...........गए साल उनकी पत्नी भी इस दुनिया को छोड़कर चल बसी। अब वे टूट गये थे। बहुत सहा उन्होंने, सहते-सहते अब तो कमज़ोर और बीमार रहने लगे
थे।
अकेला आदमी और उस पर से बीमारी ..! भला कब तक ग़ैरों और पड़ोसियों के सहारे जीता....।
पड़ोस के एक भद्र आदमी ने उनकी नाज़ुक स्थिति को देखते हुए उन्हें पास के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया वहीं उन्होंने जीवन और मृत्यु से लगभग तीन महीनों तक संघर्ष किया।
और अंतत: वहीं हमेशा के लिए इस दुनिया से कूच कर गये।
और इस तरह से हो गई एक सहिष्णु आदमी की सहिष्णुता का अंत........
सदा के लिए।
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दिनेश एल० "जैहिंद"
12.12.2015
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