मेरी चिट्ठी
आज २ अक्टूबर गाँधी जयंती है। इस राष्ट्रीय पर्व पर मैं अपने फ़ेसबुक दोस्तों को एक पत्र लिख रहा हूँ। अच्छा
लगे तो शुक्रिया जरूर कहना।
मेरे प्रिय
फ़ेसबुक मित्रो !
नमस्कार. !
मैं कुशल हूँ, आप सबों की सकुशलता की कामना करता हूँ और आशा करता हूँ कि आप सब भी कुशल होंगे।
जवानी में नसीहत अच्छी नहीं लगती है। सच्चे मित्रों की राय बुरी लगती है और माँ-बाप की सलाह तो पूछो मत,वह तो और बुरी लगती है।
मेरे फ़ेसबुक मित्रो ! मैं आपको नसीहत या कोई सलाह नहीं दे रहा हूँ बल्कि मैं फ़ेसबुक पर पत्र लिख रहा हूँ।
मुझे याद है कि जब मैं विद्यार्थी था और यही कोई सातवीं या आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था तो मैंने हिंदी की टेक्स्ट बुक की पुस्तक में एक निबंध पढ़ा था। वह निबंध इन्द्रियों और उन पर विजय प्राप्ति पर आधारित था।
तो मित्रो ! हमारी कुल पाँच इन्द्रियाँ हैं। जिन्हें हम ज्ञानेन्द्रियाँ कहते हैं। ये सभी इस प्रकार हैं --
(१) आँख
(२) नाक
(३) कान
(४) जिह्वा और
(५) त्वचा !
हम सभी जानते हैं कि कौन-सा अंग किस काम में आता है। जैसा कि विदित है कि
आँख -- देखने हेतु ,
नाक --- सूँघने हेतु ,
कान --- श्रवण हेतु ,
जिह्वा --- स्वाद हेतु और
त्वचा --- स्पर्श हेतु।
दोस्तो ! ये पाँचों मिलकर ज्ञानेन्द्रियाँ कहलाती हैं। और जो मनुष्य इन इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह
मनुष्य जितेन्द्रिय ( जितात्मा ) कहलाता है।
यहाँ दो तथ्य हैं --- या तो आप इन्द्रियों के वश में हो जायं अथवा आप इन्द्रियों को वश में कर लें।
तो दोस्तो ! यहाँ कौन इन्द्रियों को वश में करने में समर्थ है ? यहाँ तो सब उल्टा चल रहा है। हम सभी इन्द्रियों को वश में करने की बात तो दूर उल्टे इन्द्रियों के वश में हैं।
एक युग था कि हमारे ऋषि-महिर्षि, मुनि - देव सभी इन्द्रियों को वश में करके जितेेन्द्रिय बन जाते थे और ईश्वर का तप , साधना , प्रार्थना कर उन्हें प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त करते थे। मुँहमांगा वर प्राप्त करते थे।
पर आज के मनुष्यों के लिए सम्भव नहीं है। आज का मनुष्य तो उल्टे इन इन्द्रियों के वशीभूत है। इन इन्द्रियों के वश में इस तरह जकड़ा है कि ज्ञानेन्द्रियों पर विजय वाली बात निरर्थक लगती है। और उसकी चर्चा करना भी अनुचित है।
आज हम अपनी आँखें सेंकने हेतु नयी- नयी चीज़ों का इजाद करते हैं --- फ़िल्म, वीडियो लघुचित्र, सीरियल, नाटक, नुक्कड़ नाटक.........।
सुनने हेतु नयी विधा ढूढ़ते हैं। वैसे ही सूँघने हेतु तमाम ख़ुशबुओं को इजाद करते हैं। तो स्वाद हेतु भिन्न-भिन्न किस्म के तेल मसालों, पकवानों व व्यंजनों का प्रयोग उपभोग करते है.......तो त्वचा अर्थात् स्पर्श (एहसास) हेतु नित नयी चीजों की खोज में रहते हैं।
खास कर मैं युवा वर्ग को सम्बोधित करना चाहूँगा कि वे अपनी इन्द्रियों को वश में रखें उनके वश में न रहें न हों और वे उनसे अनावश्यक व अनुचित काम न लें।
वे .....नियमित....
....संयमी....
...चरित्रवान.....
...अनुशासित...
रहें.....।
वरना असमय दुखों का सामना करना पड़ सकता है। असमय परेशानियों से घिर जाएंगे। आप से जुड़े लोगों जैसे -- माता - पिता, भाई-बन्धु, यार-दोस्तों को भी कष्ट उठाना पड़ सकता है।
धन्यवाद!
आपका परम् मित्र ---
दिनेश एल० "जैहिंद"
०२.१०.२०१५
0 Comments