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## हिंदी : हमारी राष्ट्र भाषा

            हिन्दी: हमारी राष्ट्र भाषा



इन दिनों अख़बारों - पत्रिकाओं और कुछ बड़े लोगों की भाषा में बड़ी तबदिली आई है। पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है __?
मेरी समझ से या तो आप पूरी-पूरी हिन्दी ही कहें या पूरी तरह अंग्रेजी ही कहें ! दोनों ही भाषा हैं और दोनों का अपना अलग-अलग महत्व है। हिन्दी भाषा कोई कमज़ोर भाषा नहीं है।
आजकल मैं देख रहा हूँ कि कोई भी ख़बर/टिप्पणी/विचार/आलोचना बिना अंग्रेजी शब्दों की मदद के नहीं लिखा जा रहा है। हिन्दी के दस शब्दों में चार शब्द अंग्रेजी के डाले गये होते हैं। मैं मानता हूँ कि इस आघुनिक युग में इस अन्तर्राष्टीय भाषा का प्रभाव बढ़़ा है और यह बहुत हद तक हिन्दी पर पूरी तरह हावी है ! फिर भी।
यहाँ यह कहना ज़रूरी है कि हिन्दी अन्य भाषाओं के व्यवहारिक या चालू शब्दों को आत्मसात कर ले रही है और इसकी प्रसिद्धि या विशालता बढ़ती जा रही है। परन्तु यह मेरी समझ से ठीक नहीं है।
हिन्दी की समृद्धि बढ़ाने के लिए हमने कई भाषाओं के शब्दों को हिन्दी में सम्मलित किया है। लेकिन अब तो हाल यह है कि २०% के आसपास अंग्रेजी शब्दों को लोग अपनी लेखकीय सामाग्री में डाल रहे हैं। फ़िल्मी गीतों का हाल तो और बुरा है। यह कुछ अटपटा-सा लगता है।
इधर एक नया चलन भी उजागर हुआ है।वह यह कि हिन्दी भाषा को रोमन लिपि में लिखना लोगों ने शुरू कर दिया। यह परिपाटी भी ठीक नहीं है।
अत: मेरे कहने का अर्थ यह है कि भाषा को भाषा ही रहने दें। इसे कई भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करके खिचड़ी न बनाएं।
कहने/लिखने/बोलने वालों से मेरा नम्र निवेदन है कि वे इस पर विचार करें और अपने आप में सुधार करें। नहीं तो संस्कृत की हालत तो एकदम बुरी है ही। यह विलुप्त होने के कगाार पर है। और कहीं यही हाल हिन्दी की भी ना हो जाय...?

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दिनेश एल. जैहिंद
12.04.2015









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