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सार्थक चिंतन

सार्थक चिंतन 
//दिनेश एल० "जैहिंद"




वटवृक्ष के नीचे बैठा मैं यह तो सोच रहा हूँ।
जग यह होगा कैसे सुंदर मैं यह खोज रहा हूँ।।
एक का हल तलाशो दूजा रोग क्यूँ पनपता है,
नये रोगों से बचने की युक्ति ढूढ़ रोज रहा हूँ।।

कैंसर जैसे रोग से अब हजारों लोग मर रहे हैं।
कई दवा है इसकी पर फिर भी लोग डर रहे हैं।।
कुछ ऐसा मेरे हाथों लग जाता, जग जी जाता,
मुझ जैसों से ही तो ये लोग उम्मीद कर रहे हैं।।

सर ब्रह्मचारी ने कालाजार से जीवन बचाया।
एडवर्ड ने चेचक के टीके से परिचय कराया।।
राबर्ट कोच ने टी•बी•, हैजे की दवा दिलायी,
रोनेल्ड ने मलेरिया से लड़ने का जोश फैलाया।।

एडीसन ने बल्ब देकर जग से अंधकार भगाया।
राबर्ट ने अपना दिमाग लगाकर रॉकेट उड़ाया।।
राईट बंधुओं ने हवा में उड़ने हेतु दो पँख दिए,
लूईस ब्रेल ने अँधों के लिए लेखन यंत्र बनाया।।

रब भी मेरे साथ कुछ ऐसा चमत्कार कर देता।
मैं भी कोई ऐसा बहुमूल्य आविष्कार कर देता।।
मेरा ये तुक्छ जीवन आज सार्थक तो हो जाए,
मेरा मनन-चिंतन पीड़ितों का उद्धार कर देता।।

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दिनेश एल० "जैहिंद"
08. 01. 2017

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