** मुझे शिकायत है **
// दिनेश एल० “जैहिंद”
मुझे शिकायत है के अंतर्गत मेरी भी कुछ
शिकायतें हैं । आज मौका मिला है तो लिख ही लेता हूँ । आप सब जान लेंगे कहीं तो कुछ
बेहतर परिणाम निकल सके समाज और देश के लिए ।
और मानव अपने आप को थोड़ा भी बदल ले तो खुद को
धन्य समझूँगा ।
वैसे तो हर किसी को हर किसी से कुछ न कुछ
शिकायत है - लेखक को संपादक से, तो कवि को प्रकाशक से । जनता को नेता से तो संतरी
को मंत्री से । प्रजा को प्रशासन से तो ऑफिसर को शासक से । नौकर को सेठ से तो सेठ
को लक्ष्मी-गणेश से ।
इतना भर ही नहीं, अभी बहुत है – पति को पत्नी
से तो बेटे को बाप से । बेटी को माँ से तो माँ को बेटे से । कुटुंब को रिश्तेदार
से तो मेहमान को मेज़बान से । भक्त को भगवान से तो जीजा को अपनी प्यारी-प्यारी
साली से ।
जिस तरह उपरोक्त शिकायतकर्ताओं की लम्बी कतार व
उनकी शिकायतों का एक लम्बा लिस्ट है ठीक उसी तरह मैं भी अपनी शिकायतों का एक छोटा-सा
लिस्ट लिए उसी कतार में खड़ा एक शिकायतकर्ता हूँ जिसकी कुछ शिकायतें अपने ही
भाई-बन्धुओं और माता-बहिनों से है और वह यह है कि, ---
हम सभी मानव हैं । पर हम अपनी सारी मानवता बेच
खाए हैं । हम अपना ईमान बेचकर बेईमान हो गए, धर्म बेचकर अधर्मी हो गए, शराफत बेचकर
शैतान हो गए, अपनी सच्चाई
बेचकर झूठे हो गए, शर्म बेचकर बेशर्मी हो गए,
उदारता बेचकर कृपण हो गए, दया बेच कर निष्ठुर हो गए । मगर क्यूँ.... ?
मुझे इस मानव-समाज से यही शिकायत है और शिकायत
के प्रत्युत्तर में मुझे बस इतनी ही अपेक्षा है कि मानव अपना सारा मानवी गुण वापस
अर्जित कर ले और फिर वही राम और कृष्ण के काल का भारत देश व भारतीय समाज दुनिया के
समक्ष प्रस्तुत कर दे ।
मेरे लिस्ट की दूसरी बड़ी शिकायत यह है कि
हमारे प्रशासन में कार्यरत सारे छोटे-बड़े ऑफिसर, वाचमैन, चपरासी, क्लर्क, बड़ा
बाबू, छोटा बाबू, मैनेजर ये सभी धांधली, दलाली, घूसख़ोरी, घोटाला, भ्रष्टाचारी जैसे
सारे दो नम्बरी कामों में सिर से पाँव तक डूबे हुए हैं । अत: वे सभी देश, समाज व
प्रजा के अमन-चैन की खातिर इन सबों से तुरंत तौबा कर लें और कसम लें कि कभी भी इस
तरह के काम न करेंगे और न होने देंगे ।
फिर तो देश में चारों तरफ खुशहाली, सुख-शांति व
अमन-चैन व्याप्त होकर ही रहेगा ।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
25.
12. 2017
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