ये सिर्फ़ मरुस्थल नहीं है
ना ही है किसी समंदर का किनारा
जो सिर्फ़ रेतों से भरा है
ये तो मेरे जीवन की
दुरूह, दुर्गम और दुष्कर राहें हैं
जिन्हें मुझे पार करना है
और तय करना है अकेले ही
जीवन के विकट पथ
जो मेरे स्त्रीत्व, अस्तित्व
और ओजस्व को
पृथ्वी के प्राणान्त तक
जिंदा रख सके ।
ये शर्द हवाएं, तूफानी लहरें
और मुझे घेरता हुआ ये
धीरे-धीरे घोर अंधकार
मेरे लिए कुछ नहीं हैं ।
मैं इनमें चलना,
और इनसे अकेले लड़ना
भलीभाँति जानती हूँ
चूँकि मेरा तन
और मेरी हिम्मत
अभी वजूद में हैं ।
तन पे शर्ट-जींस,
स्वेटर और ओवरकोट
तथा पैरों में गर्म जूते
यूँ ही नहीं डाले हैं मैंने ।
ये मात्र कपड़े नहीं हैं मेरे
ये तो मेरे लाव-लश्कर,
साजो सामान और कवक्ष हैं
उन दुरूह, दुर्गम व दुष्कर राहों को
मरणान्त तक तय करने के ।
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दिनेश एल० "जैहिंद"
03. 01. 2018
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