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निरंकुश दरिंदों के नाम एक पत्र





** निरंकुश दरिंदों के नाम एक पत्र **
// दिनेश एल० “जैहिंद”

बहशी दरिंदो.....!
निर्लज्ज हैवानो........!!
निरंकुश बलत्कारियो......!!!

आज मेरा मन बहुत ही दुखी है, दिल तार-तार हुआ जा रहा है, दिलो दिमाग़ में आक्रोश भरा हुआ है, क्रोध में तमतमाये दिमाग और घबराये हुए दिल से शायद मैं तुम सबों को कुछ ज्यादा लानत न लिख पाऊँ, पर फिर भी जितना लिखूँ उतना पढ़कर तुम सब सुधर जाओ या कहीं चुल्लू भर पानी देख डूब मरो तो हमारा विश्व, देश, समाज, परिवार, नारी का आज से ही कल्याण होना शुरू हो जाय ।
देखो लम्पटो, पत्र अपने नाम देख भयभीत मत हो जाना और पत्र को बिना पढ़े ही पीठ पीछे मत फेंक देना या टुकड़े-टुकड़े कर फेंक मत देना । जरा भी जमीर बाकी हो तो यह पत्र जरूर पढना ।
कलिंगा युद्ध का वाकया याद आ रहा है, राजकुमारी पद्मा जब महान योद्धा सम्राट अशोक को कहती है, ‘उठाओ तलवार और युद्ध करो मुझसे’ तब महान अशोक कहता है, ‘हम वीर हैं
और सच्चे वीर स्त्रियों पर वार नहीं करते ।’
वाह रे अशोक ! यूँ ही तुझे लोग महान नहीं कहते हैं, महान थे ही तुम । ऐ भारत के मर्दो, एक वो भी तो पुरुष था, जिसके ऐसे महान विचार थे, जिसके दिल में स्त्रियों के लिए इतना सम्मान था । एक तुम भी तो पुरुष हो, उसी के वंशज, भारतीय । पूरे विश्व में भारत की और  पुरुष कौम की नाक नीची कर डाली ।
ऐ कामी, अत्याचारी ! और जानते हो कि उसी पद्मा के कारण अशोक महान युद्ध से हमेशा के लिए विरक्त हो गया ।
तेरा इतिहास तो महत्तम पुरुषों व उच्चतम विचारों से भरा पड़ा है, यहाँ की सभ्यता, संस्कृति व संस्कार का तो विश्व भर में गुणगान होता है । तेरा भारत तो विश्व गुरू कहलाता है ।
परन्तु तुमने तो अपने पूर्वजों और इतिहास से कुछ नहीं सीख पाया । अफसोस, बेहद अफसोस !! तुमने अपनी काली करतूतों से तो हम पुरुषों और भारत का नाम दुनिया भर में हँसा डाला ।
ऐ जंगली जालिमो ! तुम सब पुरूषों के नाम पर धब्बे हो । पूरी पुरुष जाती का नाम समाज में मिट्टी पलीद कर दी । सिर ऊँचा करके चलने लायक नहीं छोड़ा हम पुरुषों को । पूरी मर्द
कौम तेरे इस कुकृत्य से शर्मसार है ।
नारी.... जो तेरी ही दादी है, माँ है, बहन है, पत्नी है, भाभी है, मगर पर स्त्री को देखते ही तुझे कैसे उसमें सिर्फ एक युवती ही दीखती है और तू एक आदमखोर, अत्याचारी, बहशी, दरिंदा, व बलत्कारी बन जाता है ?
देख.... अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, सम्भल जा । अपना दरिंदगी का चोला उतार फेंक और वापस लौट आ अपनी भारतीय संस्कार, संस्कृति व शिष्टाचार में । इसी में सारी मानव जाती की भलाई और भविष्य है ।
अगर तू अब भी नहीं सम्भलता है तो इन नारियों को और इनकी शक्ति को नहीं पहचानता है तू । इन्हें दुर्गा, वैष्णो व काली बनते देर नहीं लगेगी फिर तो तेरे जैसे महिषासुरों और सहस्त्राबाहुओं का वध चुटकी में हो जाएगा ।
अंतत: अपने पत्र का अंत इसी वाक्य से करूँगा कि भगवान तुझे और इन पुरूषों को सदमति व सतबुद्धि दे ।

तुमसबों का----
एक पत्रलेखक


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दिनेश एल० "जैहिंद"
16. 04. 2018




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