** प्रेमपत्र **
// दिनेश एल० “जैहिंद”
मेरी प्रियतमा -
मधु,
ढेर सारा प्यार !
मैं पत्र कहाँ से शुरू करूँ समझ में नहीं आता । अब तो हारा सा
लगता हूँ, सोचा अब कोई पत्र नहीं लिखूँगा तुम्हें, पहले दो पत्र लिख चुका हूँ । परन्तु
तुमने किसी का जवाब नहीं दिया । पता भी नहीं कि तुम्हें मेरा पत्र मिला या नहीं ।
मिला तो जरूर होगा, तुमने पढ़ा भी होगा । मगर लगता है कि तुम बड़ी निष्ठुर हो,
तुम्हारे पास दिल नहीं, वरना तुम जवाब जरूर देती । अब तो लगता है कि मेरा प्यार
शायद एकतरफा तो नहीं । जो भी हो, राम जाने, आज ये तीसरा और अंतिम पत्र लिखा रहा
हूँ । इसके बाद शायद अब कोई पत्र न लिखूँ ।
“होगी मेहरबानी हमें दिल में बसा ले ।
डर छोड़ जमाने का गले से लगा ले ।।”
तुम्हें याद है, मेरा पागल होना । जब मैं तुम्हें पहली बार
अपनी मौसी के बड़े बेटे की शादी में देखा था । मैं तो तुम्हें देखकर बुरी तरह
आसक्त हो गया था और मैं तुम्हें ढूंढते हुए तुम्हारे ही पीछे भागता रहा था ।
दोस्तों को मुझे कहना पड़ा था – “ माफ कर यार, मुझे मेरे सपनों की रानी मिल गई है
। अब मुझे उसके पास जाने दे ।” मेरे दोस्त मुझसे नाराज हो गए थे । और उन्होंने कहा
था – “ जा सा.... , जहन्नुम में, मर ।”
तुमने देखा था, मैं तुम्हारे पीछे पागलों सा भागता रहा, और
तुमने मुझको जरा भी भाव नहीं दिया, सिर्फ़ हँसती रही । तुमने मुझे भाव नहीं दिया,
मुझे बुरा नहीं लगा । जानती हो क्यों....? क्योंकि तुम्हारी हँसी मुझे
बहुत प्यारी लगती थी । बाद में तुम कहाँ लापता हो गई, मुझे पता नहीं चला । लेकिन
मुझे इतना पता चल गया था कि मुझे तुम नहीं मिली तो मैं मर जाऊँगा ।
“दिल टूट न जाय सोच के डर जाता हूँ ।
मगर तेरी मुस्कान पे मर-मर जाता हूँ ।।”
जानू, तब से तो मेरा बुरा हाल है । मैं तुम्हें देखने को
बेकरार हूँ । मैंने तुम्हें पता किया । पर तुम्हारा पता नहीं चल सका । इसी बीस उस
दिन तुम बाजार के चौराहे पर मुझे मिल गई । मैंने तुम्हें देखा और मेरे दिल के बाग
खिल गए । तुमने भी मुझे देखा, पर तुम सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई । मुझे थोड़ा सुकून
मिला । फिर तुम अपनी सहेलियों के संग कहाँ गुम हो गई, मुझे पता नहीं लगा । पर इतना
तो पता लग ही गया कि आग दोनों तरफ लगी है । अब ये लगी तो मुलाकात से ही खत्म होगी
।
मेरी जानू ! अब दूरियाँ सही नहीं जाती । जब तुम्हारा पता
चल ही गया है, तो फिर क्या कहना । कुछ तो रहम करो अपने इस आशिक पर । पहला प्यार
मेरी पहली चिट्ठी का जवाब नहीं दिया तुमने और दूसरी का भी जवाब नहीं दिया लेकिन.....
मेरे इस पत्र का जवाब यदि तुमने नहीं दिया
तो कुछ अनर्थ हो जाएगा ।
“मुहब्बत की तड़प में दिल जल रहा है अब तो
तुम्हें पाने के ख्याल में दिल निकल रहा है मेरा”
तुम्हारा तुम्हारा ही –
प्रेमभक्त -- मुकेश
( काल्पनिक पत्र )
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दिनेश एल० "जैहिंद"
26. 03. 2018
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