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लघुकथा : बबलू का जन्मदिन








लघुकथा:
बबलू का जन्मदिन 
  //दिनेश एल० "जैहिंद"

"चटाक ! चटाक !!"
की आवाज से बदबूदार वातावरण गूँज उठा और साथ ही बबलू तिलमिलाकर गंदी बस्ती की पतली गलियों से भागा।
"सुन ! सुन !! भागता है कहाँ... ? आ जन्मदिन मनवा देती हूँ तेरा !" माँ बबलू के पीछे भगती रही और उसके पीछे बबलू... जैसे बिल्ली चूहे को खदेड़ रही हो।
"बड़ा आया है जन्मदिन मनाने
वाला, खाने के लाले पड़े हैं यहाँ और
इन्हें जन्मदिन मनाने की सूझ रही है।"
बबलू बार-बार हप्तेभर से रट लगाए हैं कि माँ, मेरा जन्मदिन..... !
हाथ में डंडे लिए माँ दौड़ती रही और बड़बड़ाती रही।
बबलू न जाने कहाँ छिप गया माँ के डर से और माँ गलियों में पूछती हुई भटकती रही !
पर ऐसा न हुआ था। वो तो मैं उधर
से आ रहा था कि सुबकते हुए बबलू को दौड़ता देखा तो अपनी ओर खींचकर दूसरी गली से घर की तरफ निकल आया।
"ए.. काकी... ए... काकी ! कहाँ ढूढ़ रही
हो बबलू को ?"  एक लड़के ने खुद ही बबलू की माँ को परेशान होते हुए
देखकर कहा - "वो तो.... वो मास्टर जी के साथ उनके घर गया।"
"कौन मास्टर जी ?"
अरे, वही.... जो अखबार में कविता-वविता, कहानी-वहानी लिखते हैं।"
"कौन.... जो बच्चों को पढ़ाते हैं !"
"हाँ... हाँ, वही...।"

अगले ही पल बबलू की माँ मेरे आगे थी डंडा लिये।
बबलू डर से मेरी ओर सरक आया
था।

"तू यहाँ छिपा बैठा है और मैं तुझे उन गलियों में ढूढ़ रही हूँ, चल...!"

मैं मुखातिब हुआ - "आखिर क्यूँ मार रही हो बहन इसे ? क्या हुआ जो
इतनी तिलमिलाई हो ?"
"क्या कहूँ मास्टर जी आप से !
मेरी दिन-दशा छुपी है क्या आप से ?
हप्तेभर बाद इसका जन्मदिन आने वाला है।" 
आगे बबलू की माँ ने कहा - "मैं ठहरी गरीब-दुखिया औरत ! न खाने को ठीक, न नहाने को ! अगले ही महीने किसी तरह कुछ पैसे जुटाकर इसकी पाँचवीं में दाखिला करवायी। पैसे की किल्लत हमेशा बनी रहती है। किसी तरह झाड़ू-पोंछा कर घर का खर्चा चलाती हूँ। और ये है कि औरों की देखा-देखी.... अपना जन्मदिन मनाने की जिद्द् किए हुए है।
भला आप ही बताइए, इसको समझ
है। इसके बापू होते तो.......!"

इतना कहकर बबलू की माँ रोने
लगी।

मुझसे उसकी दुर्दशा व बच्चे की लालसा जानकर रहा न गया। मेरी पिछली जेब में मेरा एक हाथ स्वत: चला गया। पर्स से हजार रुपए निकालकर उसके पास गया और उसके हाथ में थमा दिया और कहा - " जाओ, बबलू का जन्मदिन खुशी-खुशी मनाओ।
मगर हाँ....मुझे बुलाना मत भूलना।"

छलछलाई आँखों से हाथ जोड़ते हुए
बबलू की माँ बबलू को लेकर निकल 
गई।

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दिनेश एल० "जैहिंद"
09. 07. 2018

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