लघुकथा:
इंसानियत में मिलावट
//दिनेश एल० "जैहिंद"
एक ३५ वर्षीय युवक जो कम पढ़ा-लिखा था "एटीएम" की लाइन में लगा हुआ था।
युवक के रुपये निकालने की जब बारी आई वह एटीएम को ऑपरेट किया, पर सक्सेस नहीं हुआ। तब उसने अपने पीछे खड़े व्यक्ति से कहा-
"भैयाजी, मुझसे कुछ गलती हो जाती है, मेरे पैसे नहीं निकल रहे हैं। थोड़ी मेरी मदद कीजिए ना !"
वह व्यक्ति जैसे इसी की ताक में था, तपाक से कहा- " जरूर, जरूर ! 'एटीएम' कार्ड दीजिए और बगल में खड़ा होइए।"
युवक ने अपना एटीएम कार्ड दे दिया
और साइड में खड़ा हो गया।
युवक दुनिया देखी थी, पर अभी इंसानियत पर से उसका भरोसा नहीं उठा था।
उसे क्या पता कि.....
इधर व्यक्ति ने मशीन के अंदर कार्ड डाला और युवक से निकासी रकम पूछकर उसे भरा, फिर उससे पासवर्ड पूछा।
युवक थोड़ा झिझका, पर मजबूरी
थी। बताना पड़ा।
पासवर्ड डालने के बाद भी उसका पैसा नहीं निकल पाया।
उस व्यक्ति ने 'अफसोस' जताया और उसका एटीएम कार्ड उसे लौटा दिया।
मगर इस बीच उसका एटीएम कार्ड बदल चुका था। इसकी उसे जरा भी भनक न थी।
उसका असली एटीएम कार्ड पीछे वाले सज्जन के पास था।
युवक रुपये न मिलने के कारण मन मसोस कर अपनी साइकिल पर चढ़ा और घर की ओर लौट चला।
अभी कुछ ही दूर तक आया था कि
उसके मोबाइल पर मैसेज की रिंगिंग
हुई। पता नहीं युवक के मन में क्या आया। उसने साइकिल चलाते हुए ही
मोबाइल निकला। मैसेज चेक किया।
मैसेज क्या था, जान लेवा था। पर युवक बेचारा घबराहट में साइकिल सहित गिरते-गिरते बचा।
उसके अकाउण्ट से पचास हजार रुपये नदारद थे।
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दिनेश एल० "जैहिंद"
06. 08. 2018
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