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इकसवीं सदी-- मानव जल संकट की गिरफ्त में


इकसवीं सदी--
मानव जल संकट की गिरफ्त में
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दिनेश एल० "जैहिंद"

जल अर्थात पानी !
जल हम सभी जीव-जन्तुओं को प्रकृत की तरफ से मिला हुआ बेशकीमती उपहार है।
पृथ्वी जो हमारा घर है, यह अगर जलविहीन हो तो हम धरती पर जीवन की कभी कल्पना भी नहीं कर सकते।

समस्त जीवधारियों की कमोबेश तीन मूलभूत आवश्यकताएँ हैं - १. ऑक्सीजन, २. जल और ३. भोजन।

अगर चंद सेकेंड साँस न मिले तो यह जीवन पलक झपकते ही मृत्यु में बदल जाए। जीवित रहने के लिए सब कुछ मिल रहा है और ऑक्सीजन नहीं मिले तो समझो, इस जीवन का अंत सुनिश्चित है।
यही कारण है कि चीता प्रथम वार अपने शिकार की गर्दन पर करता है और तब तक उसकी गर्दन दबाए रखता है जब तक उसकी साँस नहीं टूट जाती।
कैसी अद्भुत बात है कि हमारा जीवन मात्र चंद साँसों का मोहताज है, पर हममें घमंड कितना है !

ऑक्सीजन मिलता रहे और जीवन चलता रहे यही प्राकृतिक व्यवस्था है, लेकिन सिर्फ ऑक्सीजन से ही यह जीवन ताउम्र नहीं चल सकता। इसे जल और भोजन की जरूरत होगी ही। भोजन आठ-दस दिन न भी मिले तो यह जीवन बना रह सकता है, पर जल दिन भर पीने को न मिले तो जीवन को बनाए रखना बड़ी मुश्किल होगा।

अत: जल जीवन के लिए अत्यावश्यक है। इसी लिए यह कहा गया है कि जल ही जीवन है। जैव वैज्ञानिकों ने तो यहाँ तक कह डाला कि इस जीवन की उत्पत्ति ही जल से हुई है।

उपर्युक्त बातों को पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि जल जीवन के लिए कितना आवश्यक है ! इस जल के बिना समस्त चराचर को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

४.५ अरब साल पहले जब पृथ्वी की उत्पत्ति हुई तब यह गर्म आग का गोला थी। तब यह जल विहीन थी, प्राणियों का नामोनिशान नहीं था, यहाँ तक कि यह वनस्पति विहीन थी। धीरे-धीरे यह हजारों वर्षों बाद ठंडी हुई, जल से परिपूर्ण हुई और शनै:-शनै: इस पृथ्वी को जीवन मिला। तब जाकर समस्त चराचर का इसके धरातल पर प्रादुर्भाव
हुआ।

आज यह धरती जीवनसहित आनंद का लंबा चक्र पूरा करती जा रही है और समस्त जीवधारी इस धरती पर मस्त-मगन होकर अपने जीवन की इहलीलाएँ उन्मुक्त पूर्ण कर रहे हैं। जीव जीवन- मृत्यु के बंधन से मुक्त हुए बिना पृथ्वी लोक का समस्त सुख भोग रहा है। "एक आता है तो एक जाता है" का जीवन- चक्र अनंत काल से निरंतर चला आ रहा है।

जल एक असीमित संसाधन है। मौसम चक्र के कारण हर साल इसकी आपूर्ति स्वत: सम्भव है। मगर फिर भी मानसूनी वर्षा के लगातार असामान्य वितरण के कारण भारत देश में ही नहीं विश्व स्तर पर भौम जल की लगातार गिरावट स्केल पैमाने पर नापी जा रही है।
कहीं चक्रवाती तूफान, कहीं सूनामी लहर, कहीं आँधी-पानी, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा आज विश्व भर में विगत १० वर्षों से देखने को मिल रहा है।
परिणामत: कहीं गाँव के गाँव डूब जाते हैं तो कहीं सूखा व अकाल फैल जाता है। सारा जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और जान-माल की हानि होती है सो अलग !

विगत वर्ष दक्षिण भारत का ही केरल राज्य जल- मग्न हो गया था और उत्तर भारत सूखे की चपेट में रहा। और इस साल भी उत्तर भारत के दिल्ली, उ० प्र०, बिहार, झारखंड, उड़ीसा आदि राज्य बारिश के बिना सूखे की चपेट में हैं और यहाँ का जन- जीवन गर्मी के कारण अस्त-व्यस्त है। और उधर मुंबई अब तक पाँच दिनों की लगातार बारिश के कारण जल मग्न हुआ जा रहा है।

इस वर्ष उत्तर भारत के कई राज्यों में जिसमें बिहार प्रमुख है भौजल की २५% से ३५ % की गिरावट देखी गई। पिछले ८-१० सालों में बारिश की असामान्य वितरण के कारण यहाँ का जल स्तर तेजी से नीचे की ओर भागा जा रहा है।
नतीजतन गाँव-गाँव, घर-घर के चांपाकल सूख गए। ताल- तलैया, नदी-नाले तो पहले से ही सूखे पड़े हैं। सारे जलीय जीव-जन्तु नष्ट हो गए। विगत पाँच वर्षों से नहरों तक में पानी नहीं देखा गया। किसानों की खेती रुक गई। यहाँ खेती-बारी का धन्धा बिल्कुल चौपट हो गया। लोग किसानी छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। बाकी किसानों की बिल्कुल दयनीय दशा है। जल-स्तर गिरने के कारण आम लोगों को विकट जल-संकट का सामना करना पड़ रहा है। वे बुरी तरह जल-समस्या से घिरे हुए हैं। यह एक बड़ी चिंतनीय विषय बन कर उभरा है | बिहार सरकार और केंद्र सरकार का ध्यान इस ओर अति शीघ्र जाना चाहिए।

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दिनेश एल० "जैहिंद"
07. 2019


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