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आधार - जंजाल या लगाम

 आधार - जंजाल या लगाम
// दिनेश एल० "जैहिंद"


भूल....! 

भूल इंसान से हो जाना स्वाभाविक है। वह इंसान क्या जिससे कभी भूल नहीं होती है। आदमी क्या भगवान से भी भूल होती रही है। अतः भूल मानव की एक स्वाभाविक प्रक्रिया में शामिल है। 



यदा-कदा मनुष्य से भूल होती रहती है। लेकिन भूल की खामियाजा मनुष्य को खुद भुगतना पड़ता है या उससे जुड़े लोगों को भुगतना पड़ता है। यहाँ तक कि कभी कभी ऐसा हो जाता है कि भूल सुधारते-सुधारते देर हो जाती है या भूल का एहसास बहुत देर बाद में होता है। तब तक सब कुछ लुट जाता है या सब कुछ बिक जाता है या सब कुछ बर्बाद हो जाता है। अतः भूल एक बहुत बड़ी भूल है। 



इस भूल के बाबत मैं यह कहूँगा कि ऊँची कुर्सी पर बैठकर कुछ लोग अपनी कुर्सी का नाजायज फायदा उठा रहे हैं और भूल पर भूल किए जा रहे हैं। कुर्सी राजनैतिक भी हो सकती है और प्रशासनिक भी हो सकती है। राजनेता, राज्यमंत्री, केंद्रमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी और सामान्य प्रशासनिक कर्म- चारी भूल पर भूल किए जा रहे हैं। और उसका खमियाजा साधारण जनता/ पब्लिक को भुगतना पड़ रहा है।


आधार कार्ड में किसी का नाम गलत है तो किसी के बाप का नाम गलत है या किसी का पता गलत है तो किसी का डेट ऑफ बर्थ गलत है या किसी का मोबाइल नंबर गलत हो गया है या आधार में दिए विवरण के हिज्जे अथवा स्पेलिंग गलत हैं। ऐसे में इन सारी समस्याओं और प्रॉब्लम्स को साधारण पब्लिक/जनता भुगत रही है।


 कंप्यूटर किसी भूल का समाधान नहीं करता है। साधारण लोगों की सामान्य जिंदगी से जुड़े तमाम काम है जो आधार कार्ड से अनावश्यक रूप से अनिवार्य कर दिये गये हैं। (जो गलत है, जनता के ध्यान को मूलभूत समस्याओं से भटकाना है।)


आधार कार्ड में जो नाम, जो जन्मतिथि, जो एड्रेस जो मोबाइल नंबर पहले से डाला हुआ है। वह उसे दिया जाय तब तो ठीक वरना गलत। 

 

कंप्यूटर सिस्टम कोई गलत सूचना नहीं ले रहा है या उसको अब्जर्ब नहीं कर रहा है या उसको एक्सेप्ट ही नहीं कर रहा है। 

 

अगर गलत डला है तो सही को नहीं ले रहा है या सही डला है तो गलत को नहीं ले रहा है। यह कम्प्यूटर की अपनी समस्या है।


ऐसे में देश भर में अनेकानेक साधारण जनता तमाम समस्याओं से जूझ रही है।

कम्प्यूटर सेंटर पर बारात जैसी भीड़ देखी जा रही है। बच्चे-बच्चियाँ, जवान स्त्री-पुरुष व बूढ़े स्त्री-पुरुष आए दिन कम्प्यूटर सेंटर का चक्कर पर चक्कर काट रहे हैं और अपना पैसा व समय जाया कर रहे हैं। परेशानियाँ झेल रहे हैं।

ये सभी बैंकों के मामले में भी तमाम परेशा- नियाँ झेल रहे हैं। कितने लोगों के तो बैंक खाते ही बंद हो गये हैं। 

कुछ समझ में नहीं आता है कि साधारण जनता के लिए मोदी सरकार फायदमंद रही है या नुकसानदेय?


अब एक उदाहरण देखिए-- एक लड़के का नाम है संजीव कुमार उसका नाम आधार कार्ड पर लिखा हुआ है संजीव कुमरा अंग्रेजी में भी यही लिखा हुआ है और हिंदी में भी यही लिखा हुआ है। अब वह किस आधार पर अपना नाम संजीव कुमार कराये और किस नाम से वह अपना बैंक खाता खुलवाए?

सारी दुनिया जानती है कि किसी किसी व्यक्ति के नाम में कुमार लगता है। सारा देश जानता है कि संजीव कुमार या मनोज कुमार या दिलीप कुमार प्रसिद्ध एक्टर रहे हैं। "कुमार" तो सर्वविदित है। 

अत: प्रस्तुत व्यक्ति के नाम में कुमार ही होगा और वह संजीव कुमार ही है। लेकिन कम्प्यूटर पर बैठा कर्मचारी कुमार को "कुमरा" लिख देता है और संजीव नाम का यह आदमी अपना नाम सुधरवाने हेतु दर-दर भटक रहा है। अब आप ही बताइए कि यह भूल किसकी है? उस आदमी की या कम्प्यूटर ऑपरेटिंग कर्मचारी की या मोदी सरकार की?


अब मेरी समस्या देखिए दूसरे उदाहरण के रूप में- मेरा नाम दिनेश महतो है। मेरा स्कूली नाम है दिनेश कुमार महतो। जेनरली मैं एक लेखक, कवि और साहित्यकार हूँ। मेरा एक पेन नेम है- दिनेश "जैहिंद" या दिनेश एल० "जैहिंद" । 

मैं अपने आस-पास, टोला-मुहल्ला और गांव में दिनेश महतो के नाम से जाना जाता हूँ। लेकिन मेरे स्कूली कागजात दिनेश कुमार महतो के नाम से है और मैं शुरू से ही लेखन से जुड़ा रहा हूँ। सो दिनेश "जैहिंद" या दिनेश एल० "जैहिंद" के नाम से लिखता रहा हूं और आज भी इसी नाम से मैं कई प्लेटफार्मों पर लिख रहा हूँ।

मेरा आधार कार्ड दिनेश कुमार महतो के नाम से है और उसमें जो भी ब्योरा छपा है मेरे स्कूली सर्टिफिकेट के हिसाब से है। पता जहाँ मैं रहता हूं वहाँ का है। लेकिन मेरे दो- तीन खाते हैं, जो मेरे नाम दिनेश कुमार महतो से है। परंतु संयोगवश मेरा एक खाता ग्रामीण बैंक में दिनेश महतो से है और आज मैं पछता रहा हूँ कि 6 महीने से मैं उसमें अपना आधार कार्ड नहीं जुड़वा पाया हूँ। मैं रोज दौड़ रहा हूँ उस ग्रामीण बैंक में और ना मेरे प्रोफाइल में सुधार हो रहा है और ना मेरा अकाउंट खुलता है। उसमें मेरे लगभग ₹10000 हैं । इस आधार कार्ड की ट्रेजडी की वजह से मैं अपने पैसे नहीं निकाल पा रहा हूँ। और ना अपने जरूरीयात काम में उन पैसों का खर्च कर पा रहा हूँ। मैं परेशान हूँ। अब बताइए उसे आधार कार्ड से जोड़वाता हूँ तो उसमें जुड़ नहीं रहा है, जुड़ भी रहा है तो एफिडेविट मांग रहे हैं। अगर एफिडेविट दे भी देता हूँ तो उसके बाद भी वह अकाउंट नहीं खुल रहा है। आज 6 महीने हो गये मुझे दौड़ते हुए। मेरा पैसा उसी में पड़ा हुआ है। और मेरा अकाउंट ब्लॉक है। मेरे अकाउंट का ब्योरा देखिए-

दिनेश महतो DINESH MHATO

S/o धोरा महतो DHORA MAHATO

Dob - 13/05/1967

आप ही ध्यान से पढ़ लीजिए। इसमें जितनी गलतियाँ हैं किसने की हैं? मैंने...! जिसने मेरा अकाउंट खोला है, उस कर्मचारी की गलतियाँ हैं ये। आज से 8-10 साल पहले ये खाता खोला गया है जब आधार कार्ड का नामोनिशां नहीं था।



अब आप आइए इस तीसरे उदाहरण की तरफ- बगल के गांव में एक बुढ़िया माई है। उनकी समस्या बहुत बड़ी है। उनका स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में खाता है। वह 80-85 वर्ष की हो गई हैं। उन्हें विधवा पेंशन मिलता है। उनके विधवा पेंशन के पैसे इसी खाते पर आते हैं। उनके पास पैसे का कोई स्त्रोत नहीं हैं। वह लाचार व मजबूर हैं। उन्हें पैसे की सख्त जरूरत है। उन्हें कहीं से भी मदद की आशा नहीं है। वह आज 6-8 महीने से बैंकों का दौरा लगा रही हैं जबकि उनका आधार कार्ड बैंक से जुड़ा हुआ है। फिर भी वह लगातार 8 महीने से दौड़ रही हैं। और अपने पैसे निकाल कर अपने लिए खर्च करना चाहती हैं। मगर उनके पैसे नहीं निकल पा रहे हैं। पता है क्यों....? उनके पैसे क्यों नहीं निकल रहे हैं, क्योंकि उनका अकाउंट/ प्रोफाइल ही नहीं खुल रहा है। अब बताइए क्यों नहीं खुल रहा है? बैंक वालों का कहना है कि दसों अंगुलियों में से कोई भी उंगली पहचान हेतु सपोर्ट नहीं कर रही है। एक बार नहीं कई बार उन्होंने अपनी अंगुलियों की जांच फिंगर प्रिंट स्कैनर पर रखकर करा चुकी हैं। लेकिन क्या मजाल कि उनका अकाउंट खुल जाए और यदि उनका अकाउंट नहीं खुलता है तो उनके पैसे नहीं मिलते हैं।

अब उनका पैसा बैंक में पड़ा हुआ है और वह बेचारी मजबूर-बेसहारा पड़ी हुई है। अपने अकाउंट से वह अपने पैसे निकाल सकें इसके लिए अंतिम हथियार रेटिनल स्कैनर है जो उनकी रेटिना का निशान लेकर कम्प्यूटर को सही पहचान दे सके। अब समस्या यह है कि बैंक वाले कोई रेटिनल स्कैनर नहीं रखते हैं। ऐसे में एक बूढ़ी माँ जो लाठी के सहारे चल रही है, कब तक बैंक का चक्कर काटती फिरेंगी? विचारणीय प्रश्न है। आज वह बेहद परेशान, मजबूर व उदास हैं। और मैं देखता हूँ कि देश में कोई ऐसा परिवार नहीं है कि आधार संबंधी समस्याओं से जूझ नहीं रहा हो।




भगवान के भी अनेकों नाम होते हैं। त्रिदेवों के हजारों नाम हैं। यहाँ तक कि देवी- देवताओं के भी सहस्त्र नाम हैं। ऐसे में एक भारतीय आदमी अपने दो-तीन नाम से जाना जाता हैं तो कौन-सी बुरी बात हो गई। यहाँ पर तो हर कोई कइयों नाम रखते हैं। कोई उसका निजी नाम होता है। कोई अपना पेट नाम रखता है। कोई स्कूली नाम रखता है। कोई अपना पेन नेम रखता है। अगर कोई अपने नाम के साथ अपना नाम और अपनी प्रस्थिति व अपनी जाति संबंधी उपनाम जोड़ कर रखता है तो कौन-सा बुरा करता है? आप किसी आदमी को उसके एक नाम से नहीं बाँध सकते हैं। अगर वह अपने मन व अभिव्यक्ति की आजादी चाहता है तो यह कहीं से नाजायज नहीं है। उसका जन्म सिद्ध अधिकार है। वैसे भी परिस्थितिवश एक आदमी कभी कुमार होता है तो कभी  स्वर्गीय होता है। वहीं स्त्रियाँ कभी कुमारी होती हैं तो कभी कुँवर/मुस्मात हो जाती हैं। इनके अलावे भी व्यक्ति अपनी बहादुरी या सुकर्मों के परिणाम स्वरूप कभी लौह पुरूष हो जाता है तो कभी जन नायक तो कभी राष्ट्रपिता हो जाता है। उसको आप किसी एक नाम से नहीं बाँध‌ सकते हैं या उसके नाम को सीमाबद्ध नहीं कर सकते। आप उसे आधार कार्ड से जोड़ कर उसके मन और उसकी आजादी पर अंकुश लगा कर रखना चाहते हैं। एक नाम, एक पता व एक मो० न० से बाँधना चाहते हैं या आप देश की हर जनता को अपनी नजर में रखना चाहते हैं। अगर ऐसी मानसिकता लिये कोई गृहमंत्री, कोई राष्ट्रपति और कोई प्रधानमंत्री होता है तो वह राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनने लायक नहीं है। भारत की जनता को ऐसे लोगों से सचेत होना पड़ेगा।


कहाँ मोदी जनता व देश का फरिश्ता बन कर आए थे और कहाँ आज मोदी सरकार जनता व देश के लिए जंजाल बनकर रह गई है। तब लोग मोदी मोदी चिल्ला रहे थे और अब वही लोग गाली से बात कर रहे हैं।

मेरा भी लोग अंधभक्त कहकर उपहास उड़ाया करते हैं। मगर मैं भी एक साधारण जनता ही हूँ। जो देश व देश की जनता के हित में‌ करेगा, उसी का सपोर्ट करूँगा अन्यथा नहीं। लोग गलत नहीं पूछते हैं - वो जनता के पंद्रह लाख रूपये कहाँ गये, वो जनता के प्रतिवर्ष दो लाख नौकरियाँ देने का वादा कहाँ गया?

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दिनेश एल० "जैहिंद"
24/02/2021


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