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व्यंग्य: लॉक डाउन वायरस


व्यंग्य:
लॉक डाउन वायरस
// दिनेश एल० "जैहिंद"


बहता पानी निर्मला ! यानि जो बह रहा है स्वच्छ है ! किंतु ठहर गया तो गंदला गया ! परन्तु बह तो बहुत कुछ रहा है, पर स्वच्छ नहीं है ! विश्व भर में हवा भी बह रही है, पर स्वच्छ नहीं है ! कोरोना वायरस से भरी पड़ी है ! बह तो खून भी रहा है मजदूरों का पटरियों पर, पर ठीक नहीं है ! मजदूरों की चित्कार है ! बह रही राष्ट्रवाद की भावना भी  है पर विरोध के कुचक्र से घिरी है ! बह रहा अलगाववाद का जिहाद भी है पर वह कुचला नहीं जा रहा है !

झरझर, सरसर, हरहर हवाएं बह रही हैं, पर ये आबोहवा विश्व भर के लिए कुछ ठीक नहीं है ! हमारे देश के लिए तो बिल्कुल भी नहीं !

कहते हैं न, चलती का नाम गाड़ी ! चल गई तो ठीक वरना ट्रैफिक जाम, भीड़भाड़, हो- हल्ला, शोर-शराबा ! शोर तो चोर भी मचाते हैं, पर हम चोर नहीं हैं, हम भूखे-नंगे मजदूर हैं ! भूखे-प्यासे, बेबस, लाचार मजबूर हैं !
हमारी शोर सुनकर मंत्रियों व संतरियों के कान पर जूँ तक नहीं रेंग रही है ! बस सिर्फ अमीरों से पैसे बटोर रहे हैं और ये पैसे कहाँ जा रहे हैं किसी को पता तक नहीं चल पा रहा है ! पता तो तब चले न जब मजदूरों का पेट भरे ! प्रवासियों को गाँव के लिए गाड़ी मिले ! गरीब जनता को रोजगार मिले ! पर लॉकडाउन में भला मजदूर तो रोजगार से रहे उल्टे सारे रोजगार ठप्प पड़ गए ! मरो मजदूरो ! आगे कुआँ पीछे खाई ! या तो कोरोना वायरस की चपेट में आकर मरो या ट्रेन से कटकर मरो या सड़क दुर्घटना में मरो
या भूख से तड़प-तड़पकर मरो ! मरना तो है ही तुम्हें ! भारतीय मजदूर हो न ! तुम मजदूर भी कहाँ हो तुम तो बेशक मजबूर हो ! तुम ऊपर से ही बदकिस्मती लिखा कर आए हो, तुम्हारा यहाँ भला कौन कर सकता है ? तुम सोच रहे होगे कि गोदी, जोगी व नामित हैं न ! नहीं रे बाबा ! ये तुम्हारे कुछ नहीं हैं ! ये तो सिर्फ डिफ़ॉल्टरों के हैं !

कभी किसी गीत में सुना था कि बढ़ती का नाम दाढ़ी, ठीक ही सुना था ! ससुरी दाढ़ी, बाल व नाखून ! इन तीनों की एक ही फितरत होती है, बढ़ते ही जाते हैं ! बढ़ने के लिए तो और भी बहुत-सी चीजें बढ़ती हैं-
पेड़, लताएँ, जनसंख्या, गरीबी, मन ! कहते हैं धन बढ़े तो ठीक पर मन का बढ़ना ठीक नहीं ! अब तो ये भी कहा जाने लगा कि जनसंख्या का बढ़ना ठीक नहीं ! गरीबी का बढ़ना ठीक नहीं ! पर मैं तो कहता हूँ कि जनसंख्या बढ़े तो बढ़े, गरीबी बढ़े तो बढ़े पर ये आतंकी न बढ़े ! और ये कोरोना ! कोरोना तो और भी नहीं !
दाढ़ी की बात उठी तो दाढ़ी पर ऊँगुलियाँ चली गईं ! महसूस हुआ कि दाढ़ी बढ़ गई है, बाल बढ़ गए हैं, नाखून भी बढ़ गए हैं ! पर इन्हें कटाएं तो कहाँ कटाएं ! न गंवई नाई, न शहरी सैलून ! जेब खाली पेट खाली ! बस, दिमाग में एक बात घूम जाती है, चलो पटरी पर ही कटवा लेते हैं !

जीवन सुहानी यात्रा है ! यह जीवन का मूल मंत्र है ! पर होगा कभी अब तो नहीं है !
अब तो इसकी रफ्तार रूक गई है ! एकदम ठहर गया है ! नतीजन यह बुरी यात्रा बन गया है ! स्वास्थ विज्ञान और डॉक्टर कहते हैं कि रूको मत चलते रहो ! आलस्य मत करो कुछ काम करते रहो ! बाबा रास देव भी कहते हैं दिन भर काम करो रात को सोओ ! रात में जल्दी सोओ, सुबह में जल्दी उठो ! कुछ काम करो कुछ नाम करो ! काम नहीं करोगे तो बेकार हो जाओगे, बीमार हो जाओगे ! अरे अब तो हम बीमार ही तो हुए जा रहे हैं ! कोरोना ने बीमार नहीं किया तो लॉक डाउन ने बीमार कर डाला ! इसमें हम अकेले नहीं हैं, पूरी जमात है ! देश की जनता है और हमारा पूरा देश है ! कोरोना लॉकडाउन वायरस ! इसकी चपेट में सभी हैं ! यह तो पूरे देश को बीमार कर रहा है !

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दिनेश एल० "जैहिंद"
10. 05. 2020


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