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व्यंग्य: बिना हाथ के मज़दूर

व्यंग्य:
बिना हाथ के मजदूर//
दिनेश एल० "जैहिंद"

 

ये झूठ फैलाया गया है कि अपना हाथ जगन्नाथ। हाथ हो तो कोई भूखा नहीं मर सकता है। पर यहाँ तो भूखे मरने की नौबत आन पड़ी है। या तो लॉकडाउन से मरो या कोरोना रोग से मरो। क्या यही मजदूरों का प्रारब्ध है ?


अपने हाथ रहते हुए अपने हाथ शोले के ठाकुर की तरह कटे हुए हैं। कैसा नजर का फेर है साल्ल्ला...! दर्शक देख तो रहे हैं कि ठाकुर के हाथ गब्बर ने काट लिये हैं पर दर्शक ये नहीं समझ पाते हैं कि ठाकुर के दोनों हाथ पीछे बंधे हैं। सिर्फ उन्हें ही कटे हुए दिख रहे हैं। मगर यहाँ ठीक इसका उल्टा किस्सा चल रहा है- मजदूरों के हाथ प्रत्यक्ष तो दिख रहे हैं। पर ये कमबख्त कटे हुए हैं। अब ये अपने कटे हुए हाथ लेकर कहाँ जाएं?


हालत ये हैं कि पेट में आँत नहीं मुँह में दाँत नहीं और आँखों में पानी नहीं कि साल्ल्ले फूट-फूट रोयें। आँत होगी तब न भूख लगेगी  व दाँत होंगे तब न रोटी टूटेगी?

चलो, आँसू कहना था तो पानी कह गया। पर जब पानी की बात ही चल पड़ी है तो इसकी भी बात कर लेते हैं। 


साल्ल्ले, लुच्च्चे, कम्म्मीने, कर्मजल्ल्ले मजदूर !!! 

इन मजदूरों का कोई पानी भी है क्या? किसकी नजर में इनका पानी है? ना मंत्री की नजर में, ना संतरी की नजर में, ना मालिकों की नजर में।

जिनको वोट देकर कुर्सी तक पहुँचाया, कमीने नजर फेर लिये। जिनको खिदमत के लिए ओहदे दिलवाए, पीछे-पीछे जयकारा लगाया, नजर उलिट लिये। जिनको सेठ से घना सेठ बना दिये, वे नजरें मूँद लिये। अब ये बेबस व लाचार मजदूर कहाँ जायें?


किसको पता है ये प्राचीन थ्योरी कि आठों ग्रह सूरज को बाँध रखे हैं। सूरज को टस से मस नहीं होने देते हैं। एक ही जगह पर स्थिर किए हुए रखते हैं। वैज्ञानिक तो ये गलत सिद्धांत दुनिया के आगे पेश किए हुए हैं कि सूरज सारे ग्रहों को अपने गुरत्वा- कर्षण से बाँधे हुए है। भला दुनिया क्या सारे मजदूरों का पोषण करेगी, ये शुक्र है मजदूरों का कि वो सारी दुनिया का भरण-पोषण अपने दम पर किए जा रहे हैं। भला मजदूर न हो तो ये दुनिया भूखे टूटकर बिखर न जाती। ये दुनिया तो गरीबों, लाचारों, बेबसों

व श्रमिकों से हैं। मगर लानत है इस दुनिया की जो चंद लोभी, लालची, चतुर व मक्कार

लोगों के हाथों में अँटकी हुई हैं। 

वे दुनिया को फँसाये हुए हैं। पर वे यह नहीं जानते कि छोटे-छोटे टुकड़े में बँटी हुई दुनिया हरेक मजदूरों के हाथों में अँटकी हुई है और इस दुनिया में ५ से ७ पिंड के पेट पीठ से चिपके जा रहे हैं। घर-घर की यही दशा है। अब इन भूखे-नंगे तन का भला क्या होगा?


मजदूरो...! अब मुगालते में रहना छोड़ो। और समय रहते एकजुट हो जाओ और सरकार की ईंट से ईंट बजा दो। वरना हाथ रहते हुए ही ठाकुर बना दिए जाओगे और बिना मारे ही मार दिये जाओगे, कुचल दिए जाओगे, दफना दिए जाओगे। और तुम्हारे पीछे रोने वाले तक नहीं बचेंगे।


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दिनेश एल० "जैहिंद"
16/05/2021

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1 Comments

  1. यह आज की व्यवस्था पर लिखा गया मेरा पसंदीदा व्यंग्य है।

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