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जब कर्ता के साथ उसकी विभक्ति "ने" जुड़ता है तो क्या होता है?

 




जब कर्ता के साथ उसकी विभक्ति "ने" जुड़ता है तो क्या होता है? 

// दिनेश एल० "जैहिंद"

किसी भी भाषा को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें भाषा और व्याकरण की पुस्तक का अध्ययन करना पड़ता है। यह चाहे कोई भी भाषा हो सकती है। चाहे वह कोई देसी भाषा हो या विदेशी भाषा हो या हिंदी हो या अंग्रेजी या संस्कृत हो या अन्य कोई भाषा।

मैं यहाँ हिंदी भाषा का एक गूढ़ अध्याय या यूँ कहूँ कि एक गंभीर विषय लेकर उपस्थित हो रहा हूँ।

किसी भी भाषा को समझने-बुझने के लिए विद्यार्थियों के लिए निचली कक्षा से लेकर ऊँची कक्षा तक की किताबों में भाषा और व्याकरण की पुस्तक रखी जाती है जिसमें उस भाषा से संबंधित सभी अध्याय नीतिगत या विधिवत दिये जाते हैं और विद्यार्थी अपने स्तर से उनका अध्ययन करके भाषा और व्याकरण को अच्छी तरह से समझते-बुझते हैं। 

कहा यह गया है कि किसी भी भाषा को शुद्ध-शुद्ध लिखने, शुद्ध-शुद्ध पढ़ने और शुद्ध-शुद्ध बोलने के लिए उससे जुड़ी भाषा और व्याकरण की पुस्तक का अध्ययन करना नितांत आवश्यक है। 

"जिस तरह आपका व्यवहार ही आपका परिचय होता है। ठीक उसी तरह आपकी भाषा ही आपकी विशिष्टता का परिचय होती है।"

सभी वर्ग के विद्यार्थी भाषा का अध्ययन करते हैं। जो तेज विद्यार्थी हैं वे इसका अध्ययन गंभीरता से करते हैं और जो सुस्त विद्यार्थी हैं वे इसका अध्ययन गंभीरता से नहीं कर पाते हैं। 

हिंदी लेखन में आई समस्याओं के समाधान हेतु और भाषा पर पकड़ बनाने के लिए हमारे सभी विद्वान कवि, लेखक, गीतकार व साहित्यकार भाषा और व्याकरण की पुस्तक का अध्ययन करते हैं। जब हम किसी भी भाषा का अध्ययन करते हैं तो हमें सूचीबद्ध पाठ के अनुसार विधिवत शुरू से लेकर अंत तक सभी नियमों का अध्ययन करना पड़ता हैं। 

विद्यार्थी तो जहाँ तक पार पाते हैं वहाँ तक पढ़-लिखकर अपनी घर-गृहस्थी में जुट जाते हैं। फिर उनको अपनी भाषा और व्याकरण से उतना कोई लेना-देना नहीं रह जाता है। लेकिन हमारे विद्वान लेखक, कवि, गीतकार व साहित्यकार या हिंदी- लेखन या हिंदी-साहित्य से जुड़े सभी विद्वान साहित्यकारों को हिंदी भाषा व व्याकरण से वास्ता पड़ता रहता है। उन्हें इस भाषा को अच्छी तरह से समझना और भाषा पर अपनी अच्छी पकड़ बनाकर रखना उनके लिए बहुत जरूरी हो जाता है। वरना उनकी लेखन क्षमता काबिल-ए-तारीफ नहीं होगी या वे एक काबिल कवि-लेखक कभी नहीं  बन सकते हैं। यहाँ तक मैंने देखा है कि अच्छे-अच्छे साहित्यकारों के साथ, संपादन मंडल से जुड़े लोगों के साथ और नाटक, फिल्म या सीरियल में अभिनय करने वाले लोगों के साथ भी भाषा की समस्या आती है। मेरा मानना है कि उन्हें भाषा की अच्छी जानकारी होनी चाहिए और इनके साथ ही नेता, अभिनेता, खिलाड़ियों को भी मंच पर या मंच से बाहर बोलते समय भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए ताकि वे अपने मन की बात या अपनी भावना दर्शकों व श्रोताओं के सामने अच्छी तरह से रख सकें।

उन विशेष लोगों को भाषा और व्याकरण का ज्ञान तो अति आवश्यक हो जाता है जो लेखन-कार्य से जुड़े हुए हैं। 

मैंने अनेक बार पाया है कि बहुत से नवोदित कलाकार, नवांगतुक नेता, नव अभिनेता और नवांकुर लेखक-कवि अपनी भाषा पर पकड़ ना होने की वजह से अपने-अपने कार्यक्षेत्र के प्रदर्शन में जगहंसाई के पात्र बनते रहते हैं। 

"भाषा और व्याकरण एक गंभीर विषय है।"

अतः मैं यहाँ व्याकरण में आने वाले एक विशेष अध्याय "कारक" और "कारक के भेद" तथा कर्ता के साथ "ने" का प्रयोग पर विशेष फोकस करूँगा जो लेखकों, कवियों व साहित्यकारों एवम् सभी वक्ताओं-वार्ता- कर्ताओं के लिए बहुत ही अहम होगा।

एक चीज़ मैं यहाँ और बता दूँ अपने पाठ- मित्रों को कि "कर्ता" के साथ जब "ने" विभक्ति जुड़ती है तो कई समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं और लेखक उन समस्याओं से खुद को निकाल नहीं पाता है और 'वाक्य' में त्रुटियाँ कर डालता है। अच्छे-अच्छे पढ़े- लिखे या बी०ए० व एम० ए० तक पढ़े-लिखे लोग इस जगह पर गलतियाँ छोड़ जाते हैं।

अब आइए शुरू करते हैं ----

कारक:

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के शेष शब्दों के संग उसका संबंध स्थापित होता है, उसे हम कारक कहते हैं।

"कारक" का अर्थ "करनेवाला" होता है।

मैं यहाँ इसका उदाहरण प्रस्तुत नहीं करूँगा क्योंकि मुझे "ने" विभक्ति पर ही अधिक फोकस करना है।

परन्तु मैं यहाँ यह बता दूँ कि कारक के आठ भेद होते हैं जिनमें कर्ता प्रधान है और कर्ता की विभक्ति/कारक चिह्न "ने" है तथा कर्ता कभी संज्ञा रूप में भी हो सकता है या सर्वनाम रूप में भी हो सकता है।

कर्ता की शेष विभक्तियाँ 'को, से, के लिए, का,के,की, में,पर आदि हैं।

कर्ता:

वाक्य में जो पद करने वाले के अर्थ में आता है, उसे कर्ता कहते हैं। जैसे- राम, मोहन, सोहन, कुसुम, लता, मैं, तुम, वह, यह, हम आदि।

संज्ञा:

जिस शब्द से किसी वस्तु, स्थान, व्यक्ति या भाव का बोध होता है, उसे संज्ञा कहते हैं। जैसे- घड़ी, दूध, पटना, राम, सेना, लज्जा आदि।

सर्वनाम:

संज्ञा के बदले जिन शब्दों का प्रयोग होता है, उन्हें सर्वनाम कहते हैं। जैसे- मैं, तुम, आप, यह, वह, जो, सो, कोई, कुछ, कौन आदि।

चूँकि कर्ता के रूप में संज्ञा व सर्वनाम के शब्द आते रहते हैं। इसलिए मैंने हल्के में यहाँ संज्ञा और सर्वनाम पर थोड़ा प्रकाश 

डाल दिया ताकि जब कर्ता की "ने" विभक्ति इनके साथ जुड़े तो कर्ता कैसा रूप अख्तियार करते हैं समझ में आ जाये।

अब मैं कर्ता के साथ "ने" विभक्ति का प्रयोग कहाँ-कहाँ होता है को बताने से पहले कर्ता के साथ "ने" विभक्ति का प्रयोग किन-किन परिस्थितियों में नहीं होता है को बता देता हूँ। ताकि इसका हल्का-सा ध्यान रखते हुए आप बाद में बताई जाने वाली बातों (कर्ता के साथ "ने" विभक्ति के नियमों) पर अधिक ध्यान दे सकें।

आइए पहले ये समझते हैं कि 

कर्ता के साथ "ने" विभक्ति/चिह्न का प्रयोग किन-किन परिस्थितियों में नहीं होता है।

१) वर्तमान और भविष्य कालों की क्रिया में कर्ता के साथ "ने" का प्रयोग नहीं होता है। जैसे- राम जाता है। वह खाता है। राम जाएगा। वह खाएगा।

२) यद्यपि कुछ सकर्मक क्रियाएँ हैं। जैसे- बकना, बोलना, ले जाना, भूलना, समझना आदि। इनकी भूतकाल क्रियाओं के कर्ता के साथ "ने" का प्रयोग नहीं होता है। जैसे- वह गाली बका, वह बोला, वह मुझे ले गया, राम मुझे भूला, वह समझा आदि।

यहाँ कर्ता के साथ "ने" नहीं जुड़ता है। यदि हम इन कर्ताओं के साथ "ने" जोड़ते हैं तो वह वाक्य गलत हो जाता है। जैसे- 

×उसने गाली बका। (अशुद्ध)×

उसने बोला। (अशुद्ध)

×उसने मुझे ले गया। (अशुद्ध)

×राम ने मुझे भूला। (अशुद्ध)

३) संयुक्त क्रिया का अंतिम खंड यदि अकर्मक हो तो उसके कर्ता के साथ "ने" का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-

√मैं खा चुका।

√वह पढ़ चुका।

√राम लिख चुका।

√सीता खेल चुकी। आदि।

ऊपर मैंने तीन गूढ़ बातें बताई हैं जो बहुत ही ध्यान देने योग्य बातें हैं। इनका लिखते समय हमेशा ख्याल रखना चाहिए। वरना वाक्यों की अशुद्धियाँ होती ही रहेंगी।

अब आइए...मैं चलता हूँ कि कर्ता के साथ "ने" विभक्ति का प्रयोग कहाँ-कहाँ होता है।

कर्ता के "ने" विभक्ति/चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित प्रस्थितियों में होता है---

१) जब एक पदीय या संयुक्त क्रिया सकर्मक भूतकालिक होती है। जहाँ मात्र सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्ण भूत और संदिग्ध भूत कालों में ही "ने" का प्रयोग होता है। जैसे- 

सामान्य भूत-  √राम ने रोटी खायी।

आसन्न भूत-  √राम ने रोटी खायी है। 

पूर्ण भूत-  √राम ने रोटी खायी थी।

संदिग्ध भूत-  √राम ने रोटी खायी होगी।

कर्म शब्द "रोटी" है। रोटी शब्द व्याकरण से स्त्रीलिंग है। सो क्रिया कर्म के लिंग (स्त्री०) के अनुसार हो जाती है।

अन्य उदाहरण देंखे--

सामान्य भूत-  √श्याम ने चावल फाँका।

आसन्न भूत-  √गीता ने खाना खाया है।

पूर्ण भूत-  √राम ने धनुष तोड़ा था।

संदिग्ध भूत-  √माँ ने डंडा मारा होगा।

यहाँ कर्म शब्द क्रमश: चावल, खाना, धनुष, और डंडा हैं। ये चारों शब्द हिंदी व्याकरण से पुल्लिंग हैं। सो क्रिया कर्म के लिंग (पु०) के अनुसार हो जाती है।

यह पहला नियम ही मुख्य है। अत: इस पहले नियम में कुछ और खास बातें जोड़कर मैं लेख के अंत में उदाहरणार्थ अनेक वाक्य प्रस्तुत करूँगा। जिससे वाक्य की अशुद्धियाँ दूर हो जाएगी।

२) सामान्यत: अकर्मक क्रिया में "ने" विभक्ति नहीं लगाई जाती है, जो मैं ऊपर लिख चुका हूँ। किन्तु कुछ ऐसी अकर्मक क्रियाएँ हैं, जैसे- नहाना, छींकना, थूकना, खाँसना; जिनके उपर्युक्त भूत कालों में "ने" चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे-

√उसने थूका।

√राम ने  छींका।

√मधु ने खाँसा। 

√इसने नहाया।

३) जब अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाए तब "ने" का प्रयोग होता है अन्यथा नहीं। जैसे- 

√सीता ने टेढ़ी चाल चली।

√राम ने भारी लड़ाई लड़ी।

√सुष्मिता ने सिलाई की।

√धोबी ने वस्त्रों की धुलाई की।

अब कुछ खास बातें---

१) जब कर्ता (संज्ञा/सर्वनाम) में "ने" विभक्ति लगती है। तब कर्ता चाहे स्त्रीलिंग हो या पुल्लिंग। यदि क्रिया का फल कर्म पर पड़ता है तो क्रिया कर्म के अनुसार होगी।

२) अब हमें यह देखना होगा कि कर्म शब्द एकवचन स्त्रीलिंग है या पुर्लिंग। 

क) यदि कर्म शब्द स्त्रीलिंग (एकवचन) हो तो,

√मैंने जलेबी खायी।

√राधा ने साड़ी पहनी।

√मोहन ने किताब पढ़ी।

√आपने फिल्म दिखायी।

√भाभी ने कविता लिखी।

ख) यदि कर्म शब्द पुल्लिंग (एकवचन) हो तो,

√मैंने एक सपना देखा।

√राधा ने ताला लगाया।

√मोहन ने दरवाजा तोड़ा।

√आपने एक लड्डू खाया।

√भाभी ने एक लेख लिखा।

३) अब हमें यह देखना होगा कि कर्म शब्द बहुवचन स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग।

क) यदि कर्म शब्द बहुवचन (स्त्रीलिंग) हो तो,

√मैंने जलेबियाँ खायीं।

√राधा ने साड़ियाँ पहनीं।

√मोहन ने किताबें पढ़ीं।

√आपने फिल्में दिखायीं।

√भामी ने कविताएँ लिखीं।

ख) यदि कर्म शब्द बहुवचन (पुल्लिंग) हो तो,

√मैंने सपने देखे।

√राधा ने ताले लगाये।

√मोहन ने दरवाजे तोड़े।

√आपने पाँच लड्डू खाये।

√भाभी ने दो लेख लिखे।

विशेष:

कभी-कभी लेखक कर्ता के साथ "ने" जोड़ने के बाद कर्म शब्द का लिंग ज्ञात न होने से क्रिया के रूप को लेकर दुविधा या असमंजस की स्थिति में पड़ जाते हैं। ऐसे में कुछ वाक्यों में कर्म शब्द के साथ "को"

जो "कर्म" की विभक्ति है को जोड़कर वाक्य पूरा करते हैं। और जब "कर्म" के साथ "को" विभक्ति लगा दी जाती है तो भूत काल में क्रिया हमेशा पुल्लिंग एकवचन रूप में ही रहती है।

यहाँ ऐसे वाक्यों के कुछ उदाहरण मैं प्रस्तुत करता हूँ---

√उसने लड़की को देखा।

√राम ने रावण को मारा।

√शिक्षक ने छात्र को पीटा।

√सहेली ने दुश्मन को लताडा़।

√भैया ने डॉक्टर से भाभी को दिखाया।

उम्मीद है आप सभी पाठकों को मेरा यह लेख पसंद आया होगा। अगर आप लेखक या नवोदित लेखक हैं। और यह लेख पढ़कर आपके ज्ञान में थोड़ा-सा भी इजाफा हो सका तो मैं खुद को धन्य समझूँगा।

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दिनेश एल० "जैहिंद"

09. 11. 2021





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