Ad Code

[[[बिहार का दुर्भाग्य]]]

 बिहार का दुर्भाग्य
//दिनेश एल० "जैहिंद"



सारण में भी बाढ़ का अंदेशा बना हुआ है। हालांकि बिहार सरकार ने पहले से ही बिहार वासियों को अलर्ट कर दिया है- "बाढ़ आ सकती है।" तो अब सारण वासियों को बाढ़ की विभीषिका झेलनी ही होगी।


निचले हिस्से में तो बाढ़ तबाही मचा ही रही है। ये हिस्से तो बारिश के ही पानी से भर चुके हैं। कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो ऊँचे हैं वहाँ अभी तक बाढ़ का पानी नहीं पहुँचा है, किंतु उनके आसपास पानी जरूर जमा हो चुका है व उछाल मार रहा है। जिसके कारण वहाँ के बाशिंदों के मन में भी बाढ़ का विध्वंसक रूप दिखता नजर आ रहा है। हालांकि बिहार सरकार ने मौसम विभाग से मिली जानकारियों के मद्देनज़र 3 महीने पहले ही निचले इलाकों के लोगों को चेतावनी जारी कर दी थी- "कोई भी किसान खरीफ की फसल ना लगाए। धान व मकई की फसल ना लगाये।" पर किसान कब मानने वाले थे। नतीजन बहुतायत जिलों में तो धान और मकई की फसल बर्बाद हो चुकी है। बहुत से लोग बाढ़ से भयभीत होकर भाग गए हैं। उनके गाँव बाढ़ के पानी में डूब गए हैं। वे अपने लोगों व अपने मवेशियों के साथ सुरक्षित जगह पर जाकर रह रहे हैं। अब तो 4 महीने बाद पानी उतरेगा, कुछ जमीन सूखेगी तब वे अपने घरों के लिए लौटेंगे। 



हमारे यहां भी कोई बढ़िया स्थिति नहीं है। हमारे क्षेत्र के सारे निचले हिस्से जलमग्न हो चुके हैं। कुछ किसान जो धान व मक्के की फसल लगाए थे वे सारी डूब चुकी हैं। जो किसान घान नहीं लगाए थे उन्हें फिक्र कम है। लेकिन जिन्होंने फसल लगाई थी वे काफी चिंतित व परेशान हैं। 

अभी हमारे छपरा (सारण) में बारिश थमने का नाम नहीं ले रही है। लगातार कई दिनों से बारिश हो रही है। कोई ऐसा दिन नहीं जाता जब बारिश नहीं होती है। कभी-कभी तो दो-दो घंटे, चार-चार घंटे झमाझम बारिश होती है। इधर भाद्रा चढ़ते ही मौसम बिगड़ चुका है। वर्तमान में लोग बारिश से खासा परेशानी झेल रहे हैं। जनजीवन बुरी तरह अस्तव्यस्त है। लोग मवेशियों के साथ खुद परेशान हैं। मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध नहीं हो रहा है। कहीं से जुगाड़-पानी लगा कर मवेशियों के खाने की व्यवस्था कर रहे हैं। ऐसे में किसान भाई लोग तमाम तरह की दिक्कतें झेल रहे हैं। और उनके मन में यह लगातार भय बना हुआ है कि वे सभी भी कहीं बाढ़ की चपेट में ना आ जाएँ?



बिहार के पूर्ववर्ती जिले जैसे- पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढी, दरभंगा, मधुबनी, मूँगेर, कटिहार, नालंदा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, पटना, आरा, बक्सर आदि  बुरी तरह से बाढ़ ग्रस्त हैं। नदियों के किनारे बसे हुए गाँव  की हालत बहुत बुरी है। कितने बाँध व किनारे तो नदी में समा गये।

पूरे बिहार की बात करूँ तो यहाँ कुल मिलाकर तकरीबन 30 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। लगभग 500 पंचायतों के 1300 से अधिक गांव बाढ़ ग्रस्त हुए हैं। 1 लाख 50 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया है। करीब 75 लाख हेक्टेयर में खड़ी‌ फसलों को नुकसान पहुँचा है। बाढ़ का पानी सड़कों तक घुस आया है और सड़कों के ऊपर से धाराप्रवाह बह रहा है जिसके कारण आवागमन में बहुत परेशानी हो रही है। जगह-जगह सड़कें धँस रही हैं अथवा टूटती जा रही हैं जिसके कारण आवागमन ठप पड़ता नजर आ रहा है।


इसे दुर्भाग्य कहूँ या संयोग कि विगत दो वर्षों से बिहार वर्षा ऋतु में बाढ़ की विध्वंसक लीला झेल रहा है। नदियों के तट बंद जगह-जगह टूट गये, तट बंद नदी में समा गये। उनकी मरम्मत व सुधार अभी तक नहीं हो पायीं। सभी गाँवों के छोटी-बड़ी सड़कें व मुख्य सड़कें तक पिछले साल ही टूट गईं जिनकी अभी तक ढंग से मरम्मत नहीं हो पायीं। विगत वर्ष 2020 में आई बाढ़ से हुई तबाही की क्षतिपूर्ति अभी तक नहीं हो पाई कि इस वर्ष पुन: बाढ़ आ धमकी है। चारों तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई है। गंगा, कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, घाघरा, बागमती, कमला, महानंदा सभी नदियों के जल स्तर में काफी वृद्धि हो रही है। गंगा, कोसी, गंडक, बागमती, पुनपुन, कमला तो खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। 


ये बिहार राज्य का दुर्भाग्य है कि हर वर्ष बिहार व बिहार वासियों को बाढ़ की चपेट में आना ही है और बाढ़ की विध्वंसक लीला को देखना व सहना ही है। बिहार सरकार न कभी कुछ स्थायी व्यवस्था कर पायी है और न कर पाएगी। दुर्भाग्य है।

==============
दिनेश एल० "जैहिंद"
01/09/2021




Post a Comment

0 Comments

Close Menu